वाराणसी में प्रतिभाओं की कमी नहीं है | आठ नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश पत्रकार परिषद द्वारा वाराणसी में आयोजित 14वें वार्षिक समारोह में चित्रकला की ऐसी ही एक प्रतिभा कौशलेश कुमार को ललित कला एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पूर्वांचल रत्न अलंकरण सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया l इस पुरस्कार में शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं मोमेंटो प्रदान किया जाता है l वर्तमान में कौशलेश कला शिक्षक के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के केंद्रीय विद्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं l याद करते चलें…
Read Moreचले गए रंगकर्मियों के ‘चचा’!
स्मृति शेष/ इब्राहिम अलकाजी आलोक पराड़कर (अमर उजाला, 9 अगस्त 2020) ‘सुनते हैं इश्क नाम के गुजरे हैं इक बुजुर्ग, हम सब के सब फकीर उसी सिलसिले से हैं-‘ फिराक गोरखपुरी के शेर को थोड़ी फेरबदल के साथ रंजीत कपूर ने भारतीय रंगमंच के शलाका पुरुष इब्राहिम अलकाजी के निधन पर अपनी श्रद्धांजलि स्वरूप व्यक्त किया था। कहना ग़लत नहीं, सशक्त रंगकर्मियों का एक बड़ा समूह जिसने अपने कार्यों से रंगमंच, टेलीविजन और फिल्मों में महत्वपूर्ण पहचान बनाई, इसी ‘बुजुर्ग’ के कारण रंगकर्म का ‘फकीर’ बना था। अलकाजी उन ढेर सारी प्रतिभाओं के गुरु और…
Read Moreइन्हीं पत्तों में कहीं ढूंढ़ना मत, पंख हूं, आकाश है…
स्मृति/ मुकुंद लाठ आलोक पराड़कर (राष्ट्रीय सहारा, 9 अगस्त 2020) सिखाने-समझाने की कई प्रक्रियाएं होती है। इब्राहिम अलकाजी के लिए यह उनका प्रशिक्षण था तो मुकुन्द लाठ के लिए उनकी पुस्तकें, आलेख और व्याख्यान । लाठ के शोध और चिन्तन ने देश-दुनिया को कला-संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का जिस प्रकार अध्ययन कराया, उनकी नई व्याख्याएं कीं, उन पर सवाल किए-वह उनकी दुर्लभ प्रतिभा और विद्वता से ही संभव था। इस सप्ताह हमने इन बड़ी सांस्कृतिक शख्सियतों को खो दिया है।लाठ ने हालांकि सांस्कृतिक इतिहास और संगीत पर गंभीर किया लेकिन उनकी प्रतिभा…
Read Moreसंगीत में नई चुनौतियों का दौर
वाराणसी में हुआ वेबीनार कोरोना काल संगीत जगत के लिए कई तरह की चुनौतियां लेकर आया है। इस दौर में जहां संगीत के माध्यम से जीविकोपार्जन करने वाले कलाकारों के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है वहीं संगीत शिक्षा के लिए भी नई परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं। संगीत शिक्षा का ऑनलाइन माध्यम को तात्कालिक व्यवस्था के तौर पर ही लिया जाना चाहिए। वाराणसी के कमच्छा स्थित वसन्त कन्या पी.जी. कालेज, कमच्छा, वाराणसी के वाद्य संगीत (सितार) विभाग द्वारा 26 जून से द्विदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया जिसका…
Read Moreकिस कोने लगेंगे अब ये कोने!
आलोक पराड़कर (अमर उजाला, 28 जून 2020)… पप्पू की दुकान इन्हीं कलाकारों, चित्रकारों, पत्रकारों, नेताओं और नागरिकों की दैनिक (अर्थात् दिन की) छावनी है !…हाल यह है कि दो लम्बी मेजों और चार लम्बे बेंचोंवाले इस दड़बे में दस-बारह गाहकों के बजाय बीस-पच्चीस संस्कृतिकर्मी सुबह से शाम तक ठंसे रहते हैं! उधर गोलियों के डब्बे के साथ बलदेव, इधर चूल्हे और केतली के पास पप्पू-नाम पप्पू उम्र चालीस साल!…अक्तूबर के दिन। सुबह के नौ बज रहे थे। दुकान ग्राहकों से भरी थी। कुछ लोग खाली होने के इन्तजार में गिलास लिए खड़े थे। शोर-शराबा काफी…
Read Moreमेरे सांगीतिक जीवन के आधार स्तम्भ मेरे पिता
कमला शंकर(प्रसिद्ध गिटार वादिका) सिर से पिता की छांव चली गई। 85 वर्ष की अवस्था में पिताजी 12 जून को अंतिम यात्रा को प्रस्थान कर गए। वे मेरे सांगीतिक जीवन के आधार स्तम्भ,मेरी हर सोच हर कार्य मे अविचल चट्टान की भांति खड़े रहते थे। आज मैं जो कुछ भी हूं उन्हीं के आशीर्वाद फलस्वरूप हूं। पिता जी और माता जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि में संगीत से जुड़ाव रहा है और इसी के चलते पिता जी हारमोनियम,,बांसुरी के साथ साथ नाक से शहनाई भी बजाते थे और अपने लोगों के…
Read Moreसराही गई आनलाइन कला प्रदर्शनी
एक्सपोजिशन वर्चुअल को चार हजार कलाप्रेमियों ने देखा कोरोना संकट में सामूहिक सहभागिता के नए विकल्प तलाश रहे कलाजगत को पिछले दिनों आयोजित एक्सपोजिशन वर्चुअल आनलाइन कला प्रदर्शनी के जरिए काफी सराहना मिली है। अवध आर्ट फेस्टिवल ने इसका आयोजन खानम आर्ट्स, बंगाल आर्ट फाउंडेशन, जयपुर आर्ट समिट, लायंस क्लब, अवध जिमखाना क्लब के सहयोग और समन्वय से किया था जिसमें 50 कलाकारों और छायाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई। एक जून से दस दिनों तक चली इस प्रदर्शनी को चार हजार से अधिक कलाप्रेमियों ने देखा और सराहा। निर्णायक…
Read Moreकला की कसौटियों पर राजा रवि वर्मा
पंकज तिवारी लोगों को देवी-देवताओं के सम्मोहक चित्रों से परिचित करवाने वाले कलाकार थे राजा रवि वर्मा। इनके द्वारा ही मुंबई में लीथोग्राफ प्रेस की स्थापना (1894) की गई, फलत: अधिक और सस्ते चित्रों का निर्माण होने से देश के अधिकतर घरों में इनके चित्रों की पहुंच हुई। राजा रवि वर्मा के चित्रों में लोगों को अपने भगवान नजर आये और उनकी पूजा भी हुई। अपने चित्रों के विषय और सजीवता के बल पर ही रवि वर्मा भारतीय जनमानस के दिलों पर राज करने लगे थे। कहना गलत न होगा कि रवि…
Read Moreयोगेश-कैसी है पहेली
आलोक पराड़कर (राष्ट्रीय सहारा,31 मई 2020)‘मैं अपने बारे में शैलेंद्र की लाइन कह सकता हूं-सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी, सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी..।’ प्रसिद्ध गीतकार योगेश ने एक साक्षात्कार (इंडिया टुडे, साहित्य वार्षिकी 2017-18 ) में तीन वर्ष पूर्व यह बात कही थी। मुंबई के अपने फ्लैट में गुमनामी की जिन्दगी जी रहे योगेश किस होशियारी के ना होने की बात कह रहे थे? एक गीतकार की होशियारी तो उनमें खूब थी। अगर ना होती तो उनके ऐसे बेमिसाल गीत हमारे बीच कैसे होते, तीन पीढ़ियों…
Read Moreकला देखने के दरमियान
अमित कल्ला सारे द्वार /खोलकर /बाहर निकल /आया हूं /यह /मेरे भीतर /प्रवेश का /पहला कदम है –जैन मुनिश्री क्षमासागर की यह सरल-सी कविता मुझे भी अपने भीतर प्रवेश करने का अनुनय करती दीखती है और मैं अपने मन के बहुतेरे द्वार खोलकर किन्हीं चित्रों को देखने कि कोशिश करता हूं, जहां बहुत सारी मूर्त-अमूर्त आकृतियां नई रोशनी लिए भीतर उतरने को उभर आयी हैं।गाहे-बगाहे हमारे द्वारा कुछ भी देखा जाना मौटे तौर पर किसी सहज वृति का ही नाम है, दरअसल जो एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे चाहे-अनचाहे हमें गुज़ारना…
Read Moreकहे में जो है अनकहा
नादरंग-4 (संपादकीय) शब्दों की अपनी सीमाएं हैं। कई अनुभूतियां ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्त करते हुए लगता है कि शब्द कम पड़ रहे हैं या उनके अर्थों में इतनी सामर्थ्य नहीं है जो सटीक वर्णन कर सकें। एक अधूरेपन का बोध होता है, लगता है जैसे ये अनुभूतियां शब्दों के कोश की पकड़ से परे हैं। मराठी कवि मंगेश पाडगांवकर ने ‘शब्दावाचुन कड़ले सारे शब्दांच्या पलिकडले..’ में शब्दों से परे की बात क्या इसीलिए की थी या हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह ने अपनी बेटी की हंसी का वर्णन…
Read Moreइरफान को कई बार देखना..
आलोक पराड़कर (राष्ट्रीय सहारा, 30 अप्रैल 2020) फिल्म अभिनेता इरफान खान की अभिनय यात्रा पर गौर करें तो हम उनकी इमेज को किस दायरे में रख पाएंगे- नशीली आंखों वाला नायक या आंखों से खौफ पैदा कर देने वाला खलनायक, बीहड़ का बागी जो हमारे ग्रामीण परिवेश के करीब है या एक पढ़ा-लिखा बौद्धिक शहरी, अपनी उधेड़बुन में खोए रहने वाला कोई स्वप्नजीवी या कई रातों तक सो न पाने वाला मनोरोगी, अंग्रेजी सही ढंग से न बोल पाने वाला हमारे मध्यमवर्गीय समाज का कोई प्रतिनिधि या हालीवुड में अपनी…
Read Moreभारत मेरा दूसरा घर
अमित कल्ला से इनसंग सांग दक्षिण कोरिया के क्यूरेटर इनसंग सांग से मिलना हमेशा ही मन को एक अलग अहसास देता रहा है, दृश्य कलाओं के प्रति उनकी दीवानगी को विभिन्न कला उत्सवों में उनके जयपुर आने के दौरान अक्सर करीब से देखता रहा हूं | दो वर्ष पहले उनके साथ लम्बी यात्राओं के भी अवसर आए, तब कला की संजीदगी के अलावा जीवन के प्रति उनके विनम्र स्वभाव और मन की धीरता को देखकर मैं उनका कायल हो गया | सांग अपने आप में जिन्दगी से दो-दो हाथ करते…
Read Moreसंगीत का संकटमोचन
आलोक पराड़कर (राष्ट्रीय सहारा, 26 अप्रैल 2020) इन पंक्तियों को लिखने में तो अब कोई नई बात नहीं है कि कोरोना संकट से पूरे विश्व में जिस प्रकार उथल-पुथल मच गई है, उसमें हम बहुत सारे नए परिवर्तनों को देख ही रहे हैं। बहुत कुछ बदल रहा है, बदल चुका है। लोग घरों में हैं, रोजगार-व्यापार बंद हैं, सड़कें वीरान पड़ी हैं और उन सारे अवसरों, आयोजनों का निषेध किया जा रहा है, जहां लोगों का जमावड़ा होता रहा है या हो सकता है। लेकिन यह जरूर हुआ है कि…
Read Moreपुरानी लकीर पीटते हैं सरकारी कला मेले
‘नादरंग’ से शैलेन्द्र भट्ट कला से जुड़े कई आयोजनों का अपना एक विशिष्ट महत्व है जहां एक मंच पर कई कलाकारों, कला समीक्षकों, कलाप्रेमियों को संवाद और कलाकृतियों के प्रदर्शन अवसर मिल पाता है। कला के प्रोत्साहन में ऐसे कई समारोह राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हैं जिनमें जयपुर आर्ट समिट ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। समिट की सफलता को इस रूप में भी देखा जा सकता है कि इसने 2017 में आयोजन के अपने पांचवे वर्ष में 50 देशों के कलाकारों को जोड़ लिया। हालांकि समिट में इधर कुछ…
Read Moreआशाएं जीवन की जद्दोजहद में खो गईं
रवीन्द्र दास से पाण्डेय सुरेन्द भारत विभाजन के कुछ दिनों बाद ही मुंबई के कलाकारों द्वारा 1948 में प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप की स्थापना हो गई थी l भारतीय कला में बंगाल स्कूल द्वारा स्थापित राष्ट्रीयता के विरोध में और अंतरराष्ट्रीय कला आंदोलनों को भारतीय कला से जोड़ने के उद्देश्य से प्रोग्रेसिव ग्रूप की स्थापना हुई थी l उन दिनों पुरे देश के कलाकारों के बीच बंगाल ग्रूप और प्रोग्रेसिव ग्रूप इन्हीं दोनों की चर्चा होती थी lबिहार के कला इतिहास पर अगर नजर दौड़ाएं तो 70 के दशक तक बिहार…
Read Moreजैसे स्थिर पानी में मारा गया हो कंकड़
‘नादरंग-4’ के सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे आलेखों, साक्षात्कारों पर हमें व्यापक प्रतिक्रिया मिल रही है। इनमें से चुनिंदा टिप्पणियां हम यहां साझा कर रहे हैं- ईमानदारी से नहीं लिखा गया संगीत का इतिहास (विजय शंकर मिश्र से प्रख्यात शास्त्रीय-उपशास्त्रीय गायक राजन-साजन मिश्र की बातचीत) काशी, वाराणसी, अविमुक्त, आनन्द कानन एवं महाश्मशान- आधुनिक बनारस के ये 5 प्राचीन नाम- इसकी 5 भिन्न विशेषताओं को रेखांकित करते हैं। डा. काणे ने हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र में लिखा है कि काशी रोम, येरुशेलम और मक्का से भी प्राचीन तथा पवित्र है।…
Read Moreमुख्यधारा के रंगमंच का असली चेहरा
राजेश कुमार रंगमंच के विभिन्न प्रकारों की चर्चा होती है तो संस्कृत रंगमंच, ग्रीक रंगमंच, पाश्चात्य रंगमंच, पारसी रंगमंच, मनोशारीरिक रंगमंच, यथार्थवादी रंगमंच, तीसरा रंगमंच जैसे नाम तत्काल स्मरण में आते हैं। लेकिन इनदिनों रंगमंच के गलियारों से एक नया नाम दबे – फुसफुसे रूप में सुनने को मिल रहा है जो न रंगमंच के किसी ग्रंथों, किताबों के पन्नों में दिखाई देता है, न रंग आलोचना – समालोचना के किसी कोने या सरकारी नाट्य संस्थानों के किसी गलियारे – चबूतरों के इर्द – गिर्द। संभव है कि आप इस…
Read Moreसरकार का काम है धमकाना, रंगमंच का लड़ना
प्रतुल जोशी से रंगकर्मी रतन थियम ( नादरंग 4 ) (स्थानः कोरस रेपेटरी थिएटर-इम्फाल) 0 थिएटर के बारे में आपने कहीं कहा था कि मैं अभी भी थिएटर को समझने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ हूं, तो सबसे पहले तो यह बताइए कि थिएटर का आपके लिए क्या अर्थ है?– मैंने इसलिए कहा था कि मुझे लगता है थिएटर जो है वह एक जगह कभी नहीं रहता है और हमेशा बदलता रहता है और इसकी प्रक्रिया जो है ये हुआ एक सिचुएशन का। लेकिन प्रक्रिया जो है वह ये है…
Read Moreविरासत के विनाश की बेचैनी में काम्बोज की कला
मंजुला चतुर्वेदी पर्यावरण विमर्श के सन्दर्भ में कलाजगत में भगवती प्रकाश काम्बोज एक सशक्त और प्रासंगिक हस्ताक्षर हैं। उनकी कृतियों में पर्यावरण, जीवन और सांस्कृतिक मूल्यों के सुन्दर समन्वय, उसकी आवश्यकता और निरन्तरता को रूपायित करने का प्रयास स्पष्ट है। काम्बोज अपने चित्रों के माध्यम से जनमानस को सचेत करने का प्रयास करते हैं कि यदि प्रकृति संपुष्ट नहीं है तो जीवन का अस्तित्व भी गहन संकट से घिर जाएगा। कहीं मानव जीवन विकास की दौड़ में कागजी दस्तावेज बनकर न रह जाए, ये एक चेतावनी भी उनके चित्र…
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